काली खोली दूज मिलकपुर क्यों मनाई जाती है और इसका महत्व

काली खोली दूज मिलकपुर क्यों मनाई जाती है और इसका महत्व

भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक त्योहारों का विशेष महत्व होता है, जिनमें काली खोली दूज मिलकपुर एक प्रसिद्ध धार्मिक पर्व है। यह त्योहार राजस्थान के भिवाड़ी क्षेत्र के निकट मिलकपुर गांव में मनाया जाता है जहां बाबा मोहनराम की पूजा-अर्चना का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। काली खोली दूज का आयोजन इस पवित्र स्थल पर बाबा मोहनराम के सम्मान में किया जाता है, जो लगभग 350 वर्षों से यहां श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है।

काली खोली और बाबा मोहनराम की पौराणिक कथा

काली खोली मिलकपुर में बाबा मोहनराम की गुफा स्थित है, जहां से उनकी अखंड ज्योत 350 वर्षों से निरंतर जल रही है। बाबा मोहनराम को त्रिमूर्ति के रूप में माना जाता है, जिनका संबंध विष्णु, कृष्ण और राम से जोड़ा जाता है। उनका वंशज नन्दू भगत को बाबा ने दर्शन दिए और उनसे वचन लिया कि वे प्राणीमात्र की समस्याओं में सहायता करेंगे। इसके बाद नन्दू भगत ने काली खोली में ज्योत प्रज्जवलित की और बाबा मोहनराम की पूजा शुरू हुई। तब से लेकर आज तक यह ज्योत जलती आ रही है और लाखों श्रद्धालु बाबा के दर्शन के लिए आते हैं।

क्यों मनाई जाती है काली खोली दूज?

काली खोली दूज का त्योहार बाबा मोहनराम के आशीर्वाद और उनकी दिव्यता को समर्पित है। यह दिन बाबा मोहनराम की पूजा और उनकी अखंड ज्योत के दर्शन के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन भक्त बाबा की कृपा पाने के लिए जोहड़ की मिट्टी छांटते हैं और श्रद्धा पूरक पूजन-अर्चन करते हैं। माना जाता है कि जोहड़ के पानी से स्नान करने और मिट्टी लगाने से सभी कष्ट दूर होते हैं।

यह पर्व केवल एक धार्मिक अर्चना ही नहीं, बल्कि समुदाय की एकता, सद्भावना और सामाजिक सहयोग का प्रतीक भी है। क्योंकि इस दौरान लोग बाबा के मंदिर में मिलकर सेवा, भंडारे और मेलों का आयोजन करते हैं जिससे सामाजिक समरसता बढ़ती है।

काली खोली दूज का धार्मिक और सामाजिक महत्व

  • आध्यात्मिक शुद्धि और मनोकामना पूर्ति: अखंड ज्योत और बाबा मोहनराम की पूजा भक्तों के जीवन में शांति, सकारात्मक ऊर्जा और कष्टों के निवारण का माध्यम बनती है। यहां की मिट्टी और जोहड़ के पानी को पावन माना जाता है।
  • समुदाय में एकता और धार्मिक आस्था: भिवाड़ी, राजस्थान समेत आस-पास के क्षेत्रों के लोग इस दिन बाबा के मंदिर में पहुंचते हैं। यह त्योहार क्षेत्रीय सांस्कृतिक विरासत को संभालने और आगे बढ़ाने का कार्य करता है।
  • मेला और सांस्कृतिक कार्यक्रम: काली खोली दूज के अवसर पर होली और रक्षा बंधन के समय तीन दिवसीय लख्खी मेला लगता है जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु वहां पहुंचते हैं। मेला धार्मिक उत्सव के साथ-साथ सामाजिक मेलजोल और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी होता है।

क्यों मनाई जाती है काली खोली दूज?

काली खोली दूज का त्योहार बाबा मोहनराम के आशीर्वाद और उनकी दिव्यता को समर्पित है। यह दिन बाबा मोहनराम की पूजा और उनकी अखंड ज्योत के दर्शन के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन भक्त बाबा की कृपा पाने के लिए जोहड़ की मिट्टी छांटते हैं और श्रद्धा पूरक पूजन-अर्चन करते हैं। माना जाता है कि जोहड़ के पानी से स्नान करने और मिट्टी लगाने से सभी कष्ट दूर होते हैं।

यह पर्व केवल एक धार्मिक अर्चना ही नहीं, बल्कि समुदाय की एकता, सद्भावना और सामाजिक सहयोग का प्रतीक भी है। क्योंकि इस दौरान लोग बाबा के मंदिर में मिलकर सेवा, भंडारे और मेलों का आयोजन करते हैं जिससे सामाजिक समरसता बढ़ती है।

निष्कर्ष

काली खोली दूज मिलकपुर एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक त्योहार है जो बाबा मोहनराम की दिव्यता और उनकी सेवा की याद दिलाता है। यह पर्व न केवल श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक शांति और आशीर्वाद का स्रोत है, बल्कि सामाजिक एकता, सांस्कृतिक पहचान और धार्मिक भक्ति का उत्सव भी है। इस त्यौहार के माध्यम से लोग अपने मन और जीवन की बुराइयों से लड़ने की शक्ति पाते हैं तथा सामूहिक धार्मिक सेवा से समाज को जोड़ने का संदेश मिलता है।

यह ब्लॉग काली खोली दूज के महत्व, इसके धार्मिक, सांस्कृतिक, एवं सामाजिक पहलुओं को विस्तार से बताता है और इसे खोज इंजन के लिए उपयुक्त कीवर्ड्स के साथ प्रस्तुत करता है, जिससे इसे ऑनलाइन आसानी से खोजा और पढ़ा जा सके।

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